Ganesh ji ki katha
श्री गणेश जी की कथा
भगवान श्री गणेश जी की कथा को लेकर लोगों के मन में अनेक प्रकार के सवाल उत्पन्न होते हैं कि उनका जन्म कैसे हुआ और उनका मुख गजमुख के अनुरूप क्यों है, तो चलिए आज हम श्री गणेश जी की कथा विस्तार में बताने की कोशिश करते हैं-
सर्वप्रथम मां पार्वती के मन में एक विचार आया कि भोलेनाथ तो हमेशा साधना में ही रहते हैं और मैं अकेली ही वह जाती हूं इस विचार के अनुरूप उन्होंने अपने शरीर के मेल से एक पुतला तैयार किया और बाद में उसमें प्राण डाल दिए जिससे एक सुंदर बालक बन गया जिसे मां पार्वती ने गणेश कहकर बुलाया और कहा कि आज से मैं तुम्हारी माता हूं और जो मैं आज्ञा दूंगी तुम उसे ही पालन करना तब बालक गणेश माता से कहता है कि मैं मां की आज्ञा का ही पालन करूंगा ।
एक बार की बात है माता पार्वती स्नान करने के लिए स्नानागार में जाती है और श्री गणेश जी को दरबान पर खड़ा कर कहती है कि किसी को भी अंदर ना आने देना मैं नहाने जा रही हूं तब श्री गणेशजी कहते हैं कि हे माते आपकी आज्ञा का पालन होगा ऐसा कहकर मां पार्वती स्नान करने के लिए अंदर प्रवेश कब जाती है।
कुछ समय बाद वहां पर भगवान शंकर भी चले जाते हैं और जैसे ही वह द्वार से अंदर जाने की कोशिश करते हैं तभी भगवान गणेश जी उन्हें रोकते हैं और कहते हैं कि मेरी माता अंदर स्नान कर रही है मैं आपको अंदर नहीं जाने दे सकता इस बात से महादेव बहुत ही क्रोधित हो जाते हैं और कहते हैं कि है मूर्ख बालक हमारे रास्ते से हट जाओ परंतु बालक गणेश है कि अपनी माता की आज्ञा का पालन सर्वोपरि मानते हुए भगवान शंकर को मना कर देते हैं , तभी भगवान शंकर वहां से बहुत ही क्रोधित होकर कैलाश पर चले जाते हैं , और वहां से नंदी और साथ में गण को भेजते हैं कि वहां से बालक को हटाया जाए,
कुछ ही देर में नंदी एवं साथ में आते हैं और गणेश जी से कहते हैं कि हे बालक यहां से हट जाओ भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो चुके हैं , उनके क्रोध में तुम भस्म हो जाओगे, तू बालक वहां से हटने का नाम ही नहीं लेता है और डटकर द्वार पर खड़ा रहता है और कहता है कि अगर आप में से किसी ने अंदर आने की कोशिश की तो मैं उससे दंड दूंगा इस बात पर नंदी गण क्रोधित होते हैं और वह श्री गणेश जी से युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं और श्रीगणेश पर प्रहार कर देते हैं , परंतु श्री गणेश जी बच जाते हैं और सभी को पीटते हैं और वहां से भगा देते हैं।
सभी मार खाकर कैलाश पर्वत पर भोलेनाथ जी के पास जाकर त्राहिमाम त्राहिमाम करते हैं और भोलेनाथ जी से कहते हैं कि हे भोलेनाथ वह बालक तो बहुत ही हटी है और मायावी है उसने हमारी एक भी नहीं सुनी और हमारे साथ युद्ध करके हमें बहुत ही मारा एवं हमारा अपमान एवं आप का भी अपमान किया इस बात पर भोलेनाथ और ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं ।
और उनसे अब रहा नहीं जाता और उनके सब्र का बांध टूट जाता है और वह खुद त्रिशूल लेकर स्नानागार की ओर चल पड़ते हैं और वहां पर पहुंचकर श्री गणेश को ललकारते है कि हे मूर्ख बालक तुमने मुझे एवं मेरे नंदी गण को परेशान किया है तुम्हें इस का दंड अवश्य मिलेगा यह बात बोलकर महादेव अपने त्रिशूल से बालक गणेश पर प्रहार कर देते हैं और क्षण भर में बालक गणेश का शीश धड़ से अलग कर देते हैं ।
कुछ क्षण बाद जब माता पार्वती नहाकर वापस बाहर आती है तो देखती है कि अपने पुत्र गणेश का शीश कटा हुआ जमीन पर पड़ा है और महादेव त्रिशूल लिए वहां खड़े हैं माता पार्वती बहुत क्रोधित होते हैं और अपने विशाल रूप में मां जगदंबे के रूप में आ जाते हैं और तीनों लोग में हाहाकार मच जाता है जिससे ब्रह्मा विष्णु महेश सहित सभी देवता गण भयभीत हो उठते हैं और सभी मां जगदंबे को मनाने की कोशिश करते हैं लेकिन मां जगदंबे पार्वती मां हट पर जाती है कि मेरे पुत्र को वापस लाकर नहीं दिया तो मैं संपूर्ण सृष्टि में विनाश कर दूंगी ।
सभी बहुत डर जाते हैं और ब्रह्मा जी और विष्णु जी महादेव जी से कहते हैं कि हे महादेव यह आपने क्या किया आपने तो पार्वती के पुत्र यानी आपने ही पुत्र को मृत्यु दंड दे दिया महादेव मां पार्वती क्षमा मांगते हैं और कहते हैं कि हे पार्वती में यह मस्तक तो नहीं जोड़ सकता परंतु यदि किसी पशु का मस्तक हो तो उसे में जोड़ कर पुनः गणेश को जीवन दान दे सकता हूं ,
तभी ब्रह्मा जी कहते हैं कि हम पूर्व दिशा में जाकर किसी पशु का मस्तक खोजते हैं और जंगल में सर्वप्रथम किसी का भी मस्तक मिले अति शीघ्र ही लेकर आते हैं और यह कहकर वह जंगल की ओर चले जाते हैं सर्वप्रथम उन्हें एक नन्ना हाथी दिखाई देता है भगवान ब्रह्मा जी उसी का शीश लेकर तुरंत वहां पर चले आते हैं और भगवान गणेश के दर पर हाथी का सिर रख देते हैं और भगवान शिव की कृपा से बालक गणेश पुनः जीवित हो जाते हैं।
तभी माता पार्वती एवं सभी देवताओं एवं ब्रह्मा विष्णु महेश सभी बालक गणेश को आशीर्वाद प्रदान करते हैं एवं उन्हें अनेक प्रकार की शक्तियां प्रदान करते हैं इस प्रकार भगवान गणेश जी का जन्म एवं उनके सर पर गज का मस्तक विराजमान हुआ और वे सभी की दुखों को दूर कर देते हैं। इसीलिए उन्हें विघ्न हरण मंगल करण गौरी पुत्र गणेश के नाम से भी जाना जाता है।
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Ganesh Ji Ki Katha In Hindi
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